मुंशी प्रेमचंद ः गबन

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जालपा ने सर्पिणी की भांति फुंकारकर कहा,यह सुनकर मुझे बडी ख़ुशी हुई! ईश्वर करे, तुम्हें मुंह में कालिख लगाकर भी कुछ न मिले! मेरी यह सच्चे दिल से प्रार्थना है, लेकिन ...

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